Saturday, February 16, 2013

Kabir Daas : 2


कबीर दास जी के दोहे
१)            जाति न पूछो साधू की, पूछीं लीजये ज्ञान!
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान!!

कबीर दास जी कहतें है कि, संतो की जाति कभी न पूछे, उनसे ज्ञान की बातें ही पूछे! तलवार का मोल-तोल करो , म्यान को पड़े रहने दो !!
२).           हीरा वहाँ ना खोलिये, जहाँ कुंजड़ों की हाट !
बांधो चुप की पोटरी, लागहु अपनी बाट !!
कबीर दास जी कहते है, अपने हीरों को कुंजडो के बाज़ार में क्यों खोलते हो, वह भला इसकी क्या कीमत जाने, बस इसी में भलाई है कि चुपके से अपनी पोटली बांध कर अपने रास्ते पर चल दो यानी अपनी शिक्षा लापरवाहों को दे कर अपना वक्त क्यों गवातें हो ! जब तुम कद्र नहीं पाते हो अपनी कीमती सीख गांठ में बांधो और अपना काम करो !!
३.)           सोवा साधु जगाईए, करे नाम का जाप !
यह तीनों सोते भले, साकित सिंह और साँप !!
अगर साधु सोता हो तो उसको जगाना चाहिए ताकि भजन करे, लेकिन अधर्मी , सिंह को नहीं जगाना चाहिए क्योकि वह उठते ही लोगो को दुःख देता है !!
४)            जाके जिव्या बंधन नहीं, हदय में नहीं साँच !
वाके संग न लगिये, खाले वटिया कांच !!
जिसको अपनी जीभ पर अधिकार नहीं तथा मन में सचाई नहीं तो ऐसे मनुष्य के साथ रहकर तुझे कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता !!
५)            दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार!
तरुवर ज्यो पती झडे, बहुरि न लगे डार!!
यह मनुष्य जन्म बड़ी मुश्किल से मिलता है और यह देह बार-बार नहीं मिलती ! जिस प्रकार पैड से पता झड जाने के बाद फिर डाल में नहीं लग सकता है !
६)            सुख में सुमिरन ना किया, दुःख में किया याद !
                कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद !!

सुख में तो कभी याद किया नहीं तथा दुःख में याद करने लगे, कबीर दास जी कहतें है कि उस दास की विनती कौन सुनेगा !
७)            कबीर माला मनिह की, और संसारी भीख !
                माला फेरे हरि मिले, गले रहट के देख !!
कबीर दास  जी कहते है कि माला तो मन की  ही होती है बाकि तो सभी लोक दिखावा है अगर माला फेरने से भगवान मिलता हो तो रहट ( कुए से पानी निकलने की पुरानी मशीन ) के  गले को देखो, कितनी बार माला फिरती है ! दिल कि माला फिरने से ही भगवान मिलता है !

८)            साईं इतना दीजये, जा मे कुटुम समाये !
                में भी भूखा न रहूँ , साधु न भूखा जाये !!
कबीर दास जी कहते है कि ईश्वर तुम मुझे इतना दो की जिसमे परिवार का गुजारा चल जाये , में भी भूखा ना रहूँ तथा साधु भी भूखा ना जाये !!
9)             मुख में थूकन दे नहीं , गुहर कोई सन देही !
                कहें कबीर या चिलम को , मांगी चिलम नहि लींन !!
कबीर दास जी कहतें है कि अगर कोई गिन्नी (धन) दे कर मुंह में थी थूकना चाहे, तो भी मनुष्य अपने मुंह में थूकने नहीं देगे ! यहाँ संसार का झूठा हुका चिलम सब पीते है !