कबीर दास जी ने आपने सभी शलोको में भगवान को प्राप्त करने के विभिन-विभिन आडम्बरो की भर्षक निंदा की है चाहे उसमे हिन्दू हो या मुस्लमान ! में भी उनके के इन विचारो से सहमत हूँ !
उनके कुछ एक शलोक में से एक दो में यहाँ मैं लिख रहा हूँ ...
पत्थर पूजे हरी मिलेँ, तो में पुजू पहाड़ ! घर का चकिया कोई न पूजे, जेक पीसा खाए !!
काकर-पाथर जोड़ के माजिद लियो बनाये ! तापे मुल्ला बाग़ दे , क्या बहिरा भयो खुदाए !!
काकर-पाथर जोड़ के माजिद लियो बनाये ! तापे मुल्ला बाग़ दे , क्या बहिरा भयो खुदाए !!
इन दोनों श्लोको में कबीर दास जी ने हिन्दू और मुस्लिम को सीधे सीधे शब्दों में समझाया है कि भगवान को प्राप्त करने का ये दिखावा बंद कर दे !
अगर आज के युग में "कबीर दास जी " होते तो आज के नेता उन्हें सेक्युलर और कोमुनल बना केर उपहास उड़ा देते शायद .... पर बात बड़े ही पते कि कही थी उन्होंने, में भी सहमत हू उनसे, तभी में बाहरी ढोंग से दूर रहना पसंद करता हूँ !!
कबीर दास जी ने गुरु को सर्वोपरि माना है , सर्वोपरि से मतलब भगवान से भी परे .. आखिर क्यों ...
कबीर दास जी ने गुरु को सर्वोपरि माना है , सर्वोपरि से मतलब भगवान से भी परे .. आखिर क्यों ...
जल परमाने माछाली कुल परमाने शुधि ! जाको जैसा गुरु मिला, ताको तासी बुदि !!
मूल ध्यान गुरु रूप है , मूल पूजा गुरु पावं ! मूल नाम गुरु वचन है, मूल सत्य सतभाव !!
गुरु गाविन्द दौ खड़े, काके लागू पाँव ! बलिहार गुरु आपनो, गोविन्द दियो बताय !!
मूल ध्यान गुरु रूप है , मूल पूजा गुरु पावं ! मूल नाम गुरु वचन है, मूल सत्य सतभाव !!
गुरु गाविन्द दौ खड़े, काके लागू पाँव ! बलिहार गुरु आपनो, गोविन्द दियो बताय !!
कबीर दास जी ने गुरु कि महिमा का अच्छे से गुण गान किया है ! उनका कहना बहुत ही सही है गुरु ही आपका मार्ग दर्शन कर सकता है इस पृथ्वी पर ! तभी हमारी शिक्षा में गुरु का महत्व पूर्ण स्थान है !
कबीर दास जी के श्लोको से मालूम पड़ता है उनके अपार ज्ञान था जैसा कि किताबो में लिखा है कि कबीर दास जी ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे, मुझे विस्वास नहीं होता है कि एक बिना पढ़ा लिखा इंसान भी इतना बड़ा ज्ञानी हो सकता है, अदभुत है !!
कबीर दास जी के श्लोको से मालूम पड़ता है उनके अपार ज्ञान था जैसा कि किताबो में लिखा है कि कबीर दास जी ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे, मुझे विस्वास नहीं होता है कि एक बिना पढ़ा लिखा इंसान भी इतना बड़ा ज्ञानी हो सकता है, अदभुत है !!
विश्वास करना काफी मुश्किल है , पर जैसा किताबो में लिखा है उसको मान ना तो पड़ेगा आखिर एक सबूत है !
वैसे जो भी उन्होंने कहा था बड़ा ही सटीक कहा था , अचराज तो इस बात का है कि आज तक भी हम उन से आगे ना तो बढ़ पाए है और ना ही अपना कुछ नया ढूँढ पाए है ! वसे ही महँ बनते फिरते है ! शायद ये सच कड़वा है पर सच है !!
कबीर दास जी ने "निन्दक" की बहुत अच्छे से भर्त्सना की है , निंदक से दूर रहने को कहा है :-
कंचन को तजबो सहल, सहल त्रिया को नेह ! निंदा करो त्याग बो, बड़ा कठिन है येह !!
कबीर दास जी के अनुसार " स्वर्ण , सम्पति एंवं स्त्री का मोह त्यागकर साधू वेष धरान कर लेना सहज है, लकिन दुसरो की बुरे करने का त्याग करना बड़ा ही कठिन है !!
निन्दन से कुता भला, हटकर मॉडे रार ! कुते से क्रोधी बुरा, गुरु दिलावे गार !!
निंदा करने वाले से कुत्ता अच्छा है जो दूर हटकर भोकता है ! कुते से क्रोधी निंदक बुरा है क्युकी वह अपने गुरु को भी गाली दिलवाता है !!
कबीर दास जी ने क्रोध के बारे में भी बहुत सही लिखा है :-
गार अंगार क्रोध डाल, निन्दा धूवा होय ! इन तीनो को परिहरे, साधू कहावे सोय !!
गली अंगार है क्रोध आंच है, पर निंदा धुआ है जो प्राणी इन तीनो को स्वार्थ त्याग दे , वही साधू कहलाने योग्य है !!
अभी ब्लॉग ज़ारी है ........ समय मिलेगा तो पूरा किया जायेगा ... धन्यवाद !
अनुज त्यागी
कबीर दास जी ने "निन्दक" की बहुत अच्छे से भर्त्सना की है , निंदक से दूर रहने को कहा है :-
कंचन को तजबो सहल, सहल त्रिया को नेह ! निंदा करो त्याग बो, बड़ा कठिन है येह !!
कबीर दास जी के अनुसार " स्वर्ण , सम्पति एंवं स्त्री का मोह त्यागकर साधू वेष धरान कर लेना सहज है, लकिन दुसरो की बुरे करने का त्याग करना बड़ा ही कठिन है !!
निन्दन से कुता भला, हटकर मॉडे रार ! कुते से क्रोधी बुरा, गुरु दिलावे गार !!
निंदा करने वाले से कुत्ता अच्छा है जो दूर हटकर भोकता है ! कुते से क्रोधी निंदक बुरा है क्युकी वह अपने गुरु को भी गाली दिलवाता है !!
कबीर दास जी ने क्रोध के बारे में भी बहुत सही लिखा है :-
गार अंगार क्रोध डाल, निन्दा धूवा होय ! इन तीनो को परिहरे, साधू कहावे सोय !!
गली अंगार है क्रोध आंच है, पर निंदा धुआ है जो प्राणी इन तीनो को स्वार्थ त्याग दे , वही साधू कहलाने योग्य है !!
अभी ब्लॉग ज़ारी है ........ समय मिलेगा तो पूरा किया जायेगा ... धन्यवाद !
अनुज त्यागी